दो बहनें

शशांक शिवपुर का पासशुदा इंजीनियर है। घर की जिंदगी में शशांक की ढिलाई कितनी भी क्यों न हो, नौकरी में वह पक्का है। प्रधान कारण यह है कि उसके कर्मस्थान में जिस ऊँचे ग्रह की दृष्टि पड़ी थी वह वही वस्तु है जिसे चलती ज़बान में 'बड़ा साहब' कहते हैं। यह स्त्री-ग्रह नहीं। शशांक जिस समय एकृंग डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर के पद पर काम कर रहा था उस समय आनेवाली तरक्की का चक्का एकाएक दूसरी और घूम गया। उसकी योग्यता को लांघकर कच्ची जानकारी होते हुए भी जिस भोगी मसोंवाले अंग्रेज़ युवक ने उसका आसन दख़ल किया, उसका अचिन्तनीय आविर्भाव अधिकारियों के सबसे बड़े अफ़सर के संपर्क और सिफारिश के बल पर हुआ था।

शशांक ने समझ लिया कि इस अर्वाचीन को ऊपर के आसन पर बिठाकर खुद नीचे बैठकर उसे ही सारा कामकाज संभालना पड़ेगा। अधिकारियों ने पीठ ठोंककर कहा, 'व्हेरी सारी मजुमदार, जितनी जल्दी होगा तुम्हारे लिये उपयुक्त स्थान जुटा देंगे। दरअसल वे दोनों ही एक ही 'फ्रामेसन् लाज' के अन्तर्गत थे।

तथापि आश्वासन और सान्त्वना के होते हुए भी सारा मामला मजुमदार के लिये अत्यंत नीरस हो उठा। घर आकर उसने छोटी-बड़ी सभी बातों में खटर-पटर करना अचानक उसकी नज़रों में आफिस-घर के कोने में पड़ा हुआ मकड़ी का जाला पड़ गया, चौकी पर पड़ा हुआ हरे रंग का पर्दा उसे बिल्कुल पसंद नहीं आता, यह भी अचानक याद आ गया। नौकर बरामदे में झाड़ दे रहा था, धूल उड़ रही है कहकर उसे ज़ोर की फटकार बताई। धूल ज़रूरी है, रोज़ ही उड़ती है परन्तु फटकार एकदम नई चीज़ थी।

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